Muslim Personal Law Board kya hai :- दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि भारतीय संविधान में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग नियम और कानून गणित किए गए हैं। जैसे तलाक देना बच्चे को गोद लेना या उत्तराधिकारी संपत्ति का कौन होगा ऐसे अनोखे समस्याएं हैं जिसमें उनके अपने ही कानून है। जिसके कारण मुस्लिम महिलाओं को विशेष तौर पर तकलीफ और दिक्कत का सामना करना पड़ता है और इन सब के नियम और कानून को निर्धारित करने वाला बोर्ड है मुस्लिम पर्सनल लॉ। जो कि मुसलमानों के लिए अनेकों प्रकार के ऐसे कानून का निदान करता है जिसकी जरूरत इस देश में नहीं है क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां पर जो भी रहने वाले लोग हैं उनको समान रूप से अधिकार संविधान के द्वारा दिए गए हैं। ऐसे में इस प्रकार के कानून देश के ऊपर एक प्रकार का बोझ है, अब आपके मन में सवाल तो जरूर आएगा कि आखिर में Muslims personal law board kya hai और उसके कार्य करने की का तरीका क्या है उसका स्थापना कब हुई अगर आप इसके बारे में जानना चाहते हैं तो मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि इस पोस्ट को आगे तक पढ़े-
मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत पर आधारित है। मोटे तौर पर, शरीयत को कुरान के प्रावधानों के साथ ही पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं और प्रथाओं के रूप में समझा जा सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14 भारत के सभी नागरिकों को ‘कानून का समान संरक्षण’ देता है, लेकिन जब बात व्यक्तिगत मुद्दों ( शादी, तलाक, विरासत, बच्चों की हिरासत) की आती है तो मुसलमानों के ये मुद्दे मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आ जाते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ की शुरुआत साल 1937 में हुई थी।
Muslim Personal Law Board In Hindi
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों के द्वारा स्थापित के रहने वाला एक गैर सरकारी संगठन है जिसका प्रमुख काम मुसलमानों के लिए अनेकों प्रकार के नियम और कानून का निर्माण करना और कोई भी उनके सामाजिक मसले होते हैं उनको हल करना है I मुस्लिम पर्सनल लॉ के द्वारा मुसलमानों के लिए अलग से 1937 मुस्लिम पर्सनल लॉ की स्थापना कई घर की गई है जिसके तहत मुसलमानों के जितने भी मसले और समस्याएं होंगी उनको अगर कोई मुसलमान अपने मसले को हल करना चाहता है तो उसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के दफ्तर जाना होगा। व्यक्तिगत मामलों में भारत में मुसलमानों को इस्लामी कानून संहिता शरीयत के आवेदन के लिए प्रदान करना। अधिनियम इस तरह की उत्तराधिकारियों को छोड़कर व्यक्तिगत कानून के सभी मामलों पर लागू होता है।
पूरा नाम | Muslims Personal Law Board |
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Short Name | AIMPLB |
स्थापना | 27 अप्रैल 1972 (13 रबी अल-अव्वल -1392 हिजरी) |
संस्थापक | मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा स्थापित |
प्रकार | गैर-राजनीतिक संगठन |
उद्देश्य | शरियत क़ानून की हिफाजत करना |
मुख्यालय | ओखला, दिल्ली, भारत |
सदस्यता | 201 |
आधिकारिक भाषा | उर्दू , अंग्रेजी |
महासचिव | मौलाना मुहम्मद वली रहमानी |
सदर | राबे हसनी नदवी |
जालस्थल | aimplboard.in |
इसके सदस्यों में भारतीय मुस्लिम समुदाय के प्रमुख वर्ग जैसे धार्मिक नेता, विद्वान, वकील, राजनेता और अन्य पेशेवर शामिल हैं। हालांकि, ताहिर महमूद जैसे मुस्लिम विद्वानों, आरिफ मुहम्मद खान जैसे राजनेताओं और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडे काटजो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया को खत्म करने का आह्वान किया है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य भारत में अहमदिया मुसलमानों के प्रावधानों को लागू नहीं करते हैं। अहमदियों को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठने की अनुमति नहीं थी, जिसे व्यापक रूप से भारत में मुसलमानों के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है, क्योंकि अधिकांश मुसलमान अहमदियों को मुसलमान नहीं मानते हैं। AIMPLB के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष भी हैं।
राबे हसनी नदवी बोर्ड के प्रमुख अध्यक्ष हैं और कल्बे सादिक, जलालुद्दीन उमरी, फखरुद्दीन अशरफ, सईद अहमद ओमेरी इसके प्रमुख उपाध्यक्ष हैं। वली रहमानी वर्तमान महासचिव हैं और खालिद सैफुल्ला रहमानी, फजलुर रहीम मुजादेदी, ज़फरयाब जिलानी और उमरीन महफूज रहमानी इसके प्रमुख सचिव हैं। रियाज उमर बोर्ड के कोषाध्यक्ष हैं। इसके कार्यकारी सदस्यों में के। अली कुट्टी मुसलीयर, मुहम्मद सुफयान कासमी, रहमतुल्लाह मीर कासमी और अन्य शामिल हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ की स्थापना 1937 में मुस्लिम धर्म गुरुओं के द्वारा किया गया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना उस समय हुआ जब भारत में ब्रिटिश शासन था और ब्रिटिश सरकार ने भारत में राज्य करने के लिए एक नई नीति का निर्माण किया। उनके मुताबिक भारत में हिंदुओं के लिए अलग कानून बनाए और मुसलमानों के लिए अलग कानून सरकार का प्रमुख मकसद था कि दोनों धर्मों में बटवारा हमेशा रखा जाए और ताकि भारत में शासन करने में उन्हें सुविधा होगी।
इसी बात को को ध्यान में रखते हुए उस समय मुस्लिम धर्म के कई गुरुओं ने अपने धर्म के लिए एक नया मुस्लिम लॉक कोड बनाया। जिसके मुताबिक मुस्लिम महिलाएं को तलाक देने का कानून हो या किसी बच्चे को गोद लेना है या संपत्ति में उत्तराधिकारी का जैसे मामला हो, इन सब का निपटारा और निवारण इसरो के मुताबिक हो सके तभी से भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की जो परंपरा है। वह चली आ रही है ऐसे तो भारत में संविधान 14 में इस बात का वर्णन है। कि भारत में जाने वाला हर नागरिक एक समान है और सभी को संविधान में दिए गए नियम कानून का पालन करना होगा।
लेकिन कई ऐसे मसले हैं यहां इस मुस्लिम धर्म के कई मामलों में कोर्ट की दखलंदाजी करने से बचता है, क्योंकि संविधान में इस प्रकार की कोई प्रक्रिया नहीं है कि कोर्ट उनके मसले को हल कर सके I
इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड (AIMPLB) के गठन का उद्देश्य शरिया कानूनों को संरक्षित करना और उनके आड़े आ रही कानूनी बाधाओं को दूर करना ही था I मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड क्या स्थापना की जो आधारशिला है वह इस्लाम धर्म का शरीयत कानून है उसी के आधार पर इसकी स्थापना की गई है I
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत अगर कोई भी पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोलता है तो महिला और पुरुष का तलाक हो जाता है लेकिन आज की तारीख में भारत के संविधान में इस प्रथा को समाप्त कर दिया है और अब ट्रिपल तलाक जैसे कानूनों को सरकार ने मुस्लिम ला पर्सन बोर्ड के अधिकार क्षेत्र से बाहर ले जाकर पर एक कानून बना दिया है अब कोई भी व्यक्ति किसी भी मुस्लिम महिला को यानि उसका पति उसे तीन बार तलाक अगर बोलता है तो उसे तलाक नहीं माना जाएगा बल्कि उसे कोर्ट में जाकर हिंदू धर्म में जिस प्रकार पति-पत्नी डिवोर्स लेकर अलग होते हैं अब मुसलमानों को भी इस प्रकार की प्रक्रिया से गुजरना होगा इसलिए हम कह सकते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लोग के अंतर्गत जो तलाक दुनिया में उसे बदल दिया गया है I
शरिया का शाब्दिक अर्थ- “पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता” होता है। शरिया क़ानून जीवन जीने का रास्ता बताता है, सभी मुसलमानों से इसका पालन करने की उम्मीद की जाती है। इसमें प्रार्थना, उपवास और ग़रीबों को दान करने का निर्देश दिया गया है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया (AIMPLB) वर्ष 1973 में स्थापित एक गैर-सरकारी संगठन है
मुसलमानों में दो प्रकार की शादियां होती हैं: 1. निकाह “स्थायी विवाह” और 2. मुता निकाह “अस्थायी विवाह”।
एक आदमी एक बार में 4 से ज्यादा पत्नियां नहीं रख सकता। पत्नी के तलाक या मृत्यु पर पांचवीं पत्नी से विवाह नियमित है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937, मुसलमानों के बीच संपत्तियों के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है।
हम आशा करते है के इस आर्टिकल से आपको मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बारे में अच्छी जानकारी मिल गया होगा । Muslims personal law board kya hai , members of Muslims personal law board आदि के बारे में आप आपने सवाल और सुझाव निचे कमेंट कर सकते है । हमारे साथ जुड़े रहने के लिए हमे सोशल मीडिया पर फॉलो कर सकते है । धन्यावाद।
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