Gama Pahalwan Biography in Hindi | Gama Pehalwan Story in Hindi | गामा पहलवान जीवनी – Biography of Gama Pehalwan in Hindi | The Great Gama Pehalwan Biography In Hindi – गामा पहलवान
हेलो दोस्तों, आपने पहलवान के नाम सुने होंगे । पर हाँ अगर आप इंडिया में रहते हो तो गामा पहलवान का नाम तो जरूर सुना होगा। बहुत से लोग तो थोड़ा बहुत Gama Pehalwan के बारे में जानते है , कुछ कुछ उड़ते फिरते कीचे सुने होंगे । पर आज हम आपके लिए पहलवानो के बादशाह Gama Pehalwan की कहानी पूरी लेकर आए है । Gama Pehalwan के बारे में जानकारी के लिए इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक पढ़े।
रुस्तम-ए-हिंद के नाम से मशहूर जामा पहलवान की आज 144वीं जयंती है। गामा का असली नाम गुलाम मुहम्मद बख्श था, लेकिन उन्हें रिंग में द ग्रेट गामा के नाम से जाना जाता था। गामा ने अपने जीवन में कभी कोई कुश्ती नहीं हारी है।
The Great Gama Pehalwan | Gama Pahalwan Biography in Hindi
गामा पहलवान का असली नाम गुलाम मुहम्मद बख्श था। अजेय गामा पहलवान का जन्म 22 मई, 1878 को अमृतसर के पास जब्बोवाल, पंजाब में उनके जन्म पर विवाद के बावजूद हुआ था। उनके बचपन का नाम गुलाम मुहम्मद था। उन्होंने दस साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी। ।
उस समय दुनिया में कुश्ती के मामले में अमेरिका के जैविस्को का बहुत नाम था। गामा ने इसे भी परास्त कर दिया था। पूरी दुनिया में गामा को कोई नहीं हरा सका, और उन्हें वर्ल्ड चैंपियन का ख़िताब मिला। भारत-पाक बटवारे के समय ही ये अपने परिवार के साथ लाहौर चले गए। मई 1960 को लाहौर में ही उनकी मृत्यु हो गई।
जामा पहलवान जब 6 साल के थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। लेकिन तब तक उन्होंने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत कर दी थी। पिता के गुजर जाने के बाद जामा भलवान के नाना नून भलवान ने उन्हें और उनके भाई को कुश्ती के गुर सिखाने का जिम्मा संभाला। उसके बाद मामा इड़ा भलवां ने भी जामा और उसके भाई को तराशा। गामा बिहलवान पहली बार दुनिया के सामने तब आए जब वह केवल 10 साल के थे। इस साल 1888 था। तब जोधपुर में सबसे मजबूत व्यक्ति को खोजने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। 400 से अधिक सेनानियों ने भाग लिया और गामा अंतिम 15 में से एक था।
इतनी कम उम्र में गामा की शक्ति को देखकर जोधपुर के महाराजा चकित रह गए। इसी वजह से गामा को विजेता घोषित किया गया। फिर, अपने पिता की तरह, जामा भी दतिया महाराज के दरबार में लड़ने लगा।
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छोटी सी उम्र में ही गामा का नाम हर जगह गूंजने लगा। वह दिन में 10 घंटे से अधिक प्रशिक्षण लेता था और अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अखाड़े में एक दिन में 40 पहलवानों से कुश्ती लड़ते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह रोजाना 5 हजार बैठक और 3 हजार दंड लगाते थे। गामा रोज़ तीस से पैंतालीस मिनट में, सौ किलो कि हस्ली पहन कर पाँच हजार बैठक लगाते थे, और उसी हस्ली को पहन कर उतने ही समय में तीन हजार दंड लगाते थे ।
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गामा ने अपने कुश्ती करियर की शुरुआत महज दस साल की उम्र में की थी। 1888 में जब भारत के प्रसिद्ध पहलवानों को जोधपुर बुलाया गया तो उनमें से एक को गामा पहलवान भी कहा जाता था। लगभग 450 पहलवानों में से 10 वर्षीय गामा पहलवान पहले 15 में शामिल थे। इस संबंध में जोधपुर के महाराजा को उस प्रतियोगिता का विजेता घोषित किया गया। बाद में महाराजा दतिया ने अपनी शिक्षा शुरू की।
1895 में, गामा ने देश के सबसे बड़े पहलवान रहीम बख्श सुल्तानीवाला के साथ एक मैच खेला। रहीम बख्श की हाइट 6 फीट 9 इंच थी जबकि जामा बिहलवान की हाइट महज 5 फीट 7 इंच थी। इस मैच में रहीम बख्श गामा को नहीं हरा पाए और मैच टाई हो गया। उसके बाद, जामा पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया।
इस द्वंद्व की बहुत चर्चा है। उस समय अक्सर इस संघर्ष की चर्चा होती थी। महान लोग इस द्वंद्व को देखने आए हैं। यह संघर्ष काफी देर तक चलता रहा। शुरुआत में गामा पहलवान ने डिफेंस में लड़ाई जारी रखी, लेकिन दूसरे राउंड में स्ट्राइकर बन गए। सेनानियों के बीच एक भयंकर द्वंद्व था। इस बीच गामा बिहालुआन के नाक, मुंह और सिर से खून बहने लगा। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और लड़ाई जारी रखी। अंत में मैच ड्रॉ पर समाप्त हुआ। लेकिन इसी द्वंद्व के कारण गामा पहलवान नाम पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया।
1910 तक, गामा बिहलवान ने रहीम बख्श सुल्तानीवाला को छोड़कर भारत में लगभग हर सेनानी को हरा दिया था। उन्होंने रुस्तम-ए-हिंद उपनाम भी अर्जित किया। फिर उन्होंने विश्व चैंपियनशिप पर अपनी नजरें जमाईं और अपने भाई इमाम बख्श के साथ लंदन चले गए।
लंदन में टूर्नामेंट से पहले, गामा पहलवान को एक और बाधा का सामना करना पड़ा, जब उसे केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उनकी हाइट बहुत छोटी थी। इस पर उन्होंने यह घोषणा कर दी वे केवल आधे घंटे के अंदर ही किन्ही तीन पहलवानों को जो कि किसी भी भार-वर्ग के हो, उन्हें हरा कर अखाड़े से फेंक सकते हैं। पहले तो सभी को लगा कि यह अफवाह है और काफी देर तक कोई नहीं आया।
लेकिन फिर गामा पहलवान ने एक और शर्त रखी, जहां उन्होंने फ्रैंक गुच और स्टैनिस्लॉस ज़ेवेस्को को चुनौती दी, या तो उन्हें इस द्वंद्व में हरा दिया या इसे चूकने के बाद, पुरस्कार राशि के साथ घर लौट जाएगे। सबसे पहले, बेंजामिन रोलर नाम के एक अमेरिकी पहलवान ने उनकी चुनौती स्वीकार की। लेकिन पहले टर्न में गामा ने उन्हें 1 मिनट 40 सेकेंड में जमीन पर पटक दिया और दूसरे टर्न में 9 मिनट 10 सेकेंड में उन्हें कुचल दिया। अगले दिन गामा पहलवान ने 12 पहलवानों को हराकर टूर्नामेंट में प्रवेश किया।
1910 में, भारतीय पहलवानों को हराने के बाद, गामा ने विदेशी हैवीवेट पहलवानों को चुनौती दी। ब्रिटेन के विदेशी लड़ाकों को धूल चाटने की चनौती दी । गामा ने 9.50 मिनट में ब्रिटेन के सर्वश्रेष्ठ पहलवान, स्टैनिसलॉस जेविस्को और फ्रैंक गोट्स्च को चुनौती दी। तब स्टैनिस्लॉस ने गामा चुनौती स्वीकार की और 10 सितंबर, 1910 को दोनों ने प्रतिस्पर्धा की। गामा गावेस्को ने पहले मिनट में ही पटक दिया। इसके बाद 19 सितंबर को मैच फिर से शुरू हुआ लेकिन जेविस्को स्टेडियम में नहीं पहुंचे। इस कारण से गामा पहलवान को ही उस मैच का विजेता घोषित कर दिया गया और उन्हें इनाम राशि के साथ-साथ जॉन बुल बेल्ट के साथ भी सम्मानित किया गया । इस सम्मान के साथ ही उन्हें रुस्तम-ए-ज़माना के खिताब से भी नवाज़ा गया । परंतु इस सम्मान की खासियत यह थी कि इस मैच में उन्हें बिना लड़े ही विजय मिली ।
इंग्लैंड से लौटने के तुरंत बाद, Gama पहलवानका इलाहाबाद में रहीम बख्श सुल्तानी वाला से सामना होता है। इस लंबे द्वंद्व में गामा पहलवान आखिरकार विजयी हुआ और साथ ही साथ रुस्तम हिंद का खिताब भी जीता। बाद में अपने जीवन में, एक साक्षात्कार में जब पूछा गया कि जामा पहलवान को सबसे कठिन लड़ाई किसने दी, तो उन्होंने कहा “रहीम बख्श सुल्तानीवाला”।
गामा ने अपनी आखिरी लड़ाई 1927 में लड़ी थी। इसमें उन्होंने स्वीडिश पहलवान जेस पीटरसन के साथ मुकाबला किया था। इसमें गामा में पीटरसन को हराया। हालांकि, इसके बाद उन्होंने कुश्ती बंद कर दी। गामा ने अपने जीवनकाल में देश-विदेश में 50 से अधिक पहलवान को चित किया। अपने जीवन कल में गामा पहलवान कभी नहीं हारे । पूरी दुनिया में गामा पहलवान को कोई नहीं हरा सकता, इसी वजह से उन्हें वर्ल्ड चैंपियन कहा जाता है।
1947 में भारत के विभाजन के समय, जामा पाकिस्तान चले गए और अपने भाई इमामबाख और भतीजों के साथ वहाँ रहे और अपना शेष जीवन बिताया। सीरीज “रुस्तम-ए-ज़मां” के आखिरी दिन काफी परेशानी और परेशानी में थे। इस अजेय व्यक्ति को रावी नदी के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी में रहना पड़ा। उन्हें अपने जीवन के अंतिम दिन अपने कीमती सोने और चांदी के स्मृति चिन्ह बेच के बिताने पड़े। वह हमेशा बीमार रहता था। उनकी बीमारी की खबर सुनकर भारत के लोगों के लिए दुखी होना स्वाभाविक था।
पटियाला के महाराजा और बिड़ला भाइयों ने उसकी मदद के लिए पैसे भेजना शुरू किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 22 मई, 1960 को, “रुस्तम अज़-ज़मान” जामा ने लाहौर, पाकिस्तान में अपनी जान गंवा दी। गामा मृत्यु के बाद भी अमर है। दुनिया में भारतीय कुश्ती का झंडा फहराने का फायदा सिर्फ जामा को ही है।
हम आशा करते है के इस आर्टिकल से आपको Rustam E Hind Gama Pehalwan के बारे में अछि जानकारी मिली होगी । यह पर हमने Gama Pehalwan के जनम से लेकर मृत्यु तक की पूरी स्टोरी कवर की है । यहाँ पर हमने gama pehalwan wrestler story और Winning Famous match Gama Pehalwan के बारे में जानकारी दी है। अगर आपका कोई अन्य सवाल या सुझाव है तो आप निचे कमेंट कर सकते है । हमारे साथ जुड़े रहने के लिए हमे सोशल मीडिया पर फॉलो करे । धन्यावाद। Gama Pahalwan Biography in Hindi
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