Office of Profit in Hindi | Office of Profit kya hota hai | Labh ka pad ka kya matlab hai| लाभ का पद क्या होता है ? ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है ?
हेलो दोस्तों , जैसा कि आप लोग जानते हैं कि हाल के दिनों में झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के ऊपर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस दर्ज हो चुका है। जिसके मुताबिक उनके विधायिका आप चुनाव आयोग के द्वारा अयोग्य घोषित की जा सकती है अभी इसके लिए कानूनी प्रक्रिया चुनाव आयोग कुछ दिनों के भीतर शुरू करने वाला है। ऐसे में दोस्तों आप लोगों के मन में सवाल आएगा कि आखिर में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है ? अगर किसी भी मुख्यमंत्री या विधायक के ऊपर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस बनता है तो मंत्री और विधायक का क्या होगा? अगर आप इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं है मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि पोस्ट को आखिर तक पढ़े- क्या होता है ?
जब किसी संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी दुसरे सरकारी पद पर भी आसीन हो जाता है और उसके द्वारा वहां से भी वेतन और भत्ते लिया जाता है, या उसके निर्णय से कोई व्यक्ति प्रभावित होता है, तब उसके सरकारी पद पर रहने को लाभ का पद कहा जाता है।
Office of Profit in Hindi
Office of profit को हिंदी में लाभ का पद कहा जाता है। अब आप लोगों के मन मे सवाल आएगा कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है? तो मैं आपको बता दूं कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्रकार का संवैधानिक पद पर आसीन है और वह अपने इस पद पर जाते हुए उसे सही प्रकार के सरकारी सुविधा मिल रहा है इसके बावजूद भी वह अपने पद का इस्तेमाल अपने आप को फायदा पहुंचाना चाहता है। तब ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति के ऊपर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस दर्ज हो सकता है। हाल के दिनों में झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस दर्ज किया गया है इसकी वजह बताई गई है कि उन्होंने अपने पद पर रहते हुए अपने लिए माइनिंग के लाइसेंस अपने नाम पर जारी करवाए हैं।
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हमारे संविधान के अनुच्छेद 102 (1) a और 191(1) a के अंतर्गत लाभ के पद शब्द का उल्लेख तो किया गया है। परन्तु इस परिभाषित नहीं किया गया, अनुच्छेद 102 के तहत कोई भी विधायक या सांसद अपने पद पर रहते हुए से किसी भी प्रकार के लाभ व प्राप्त नहीं कर सकता है, क्योंकि उसे पहले से ही वेतन और दूसरे प्रकार के सरकारी सुविधा सरकार की तरफ से मिल रही है।
भारतीय संविधान 1951 9A के मुताबिक अगर कोई भी विधायक और सांसद अगर किसी प्रकार का दूसरा लाभ का पद प्राप्त करना चाहता है, या उच्च पद पर आसीन होता है तो ऐसी स्थिति में उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है। सोनिया गांधी हेमंत सोरेन जया बच्चन जैसे लोगों ने अपनी सांसद की सदस्यता ऑफिस ऑफ प्रॉफिट यानी लाभ के पद के कारण गवा चुके है।
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भारत के सांसद के द्वारा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 पारित किया गया है यह इन बातों की पुष्टि करता है, कि संसद और राज्य विधानसभाओं में सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं और क्या अयोग्यताएं होती हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (4) में यह भी प्रावधान है कि कोई भी जनप्रतिनिधि अगर किसी भी मामले में दोषी ठहराए जाने की तिथि से तीन महीने तक अदालत में अपील दायर करता है। तो उसका निबटारा होने की तिथि तक वह अपने पद से अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता।
अगर किसी भी विधायक या संसद के ऊपर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का दोष साबित होता है, तो सबसे पहले उसकी सदस्यता रद्द की जाएगी इसके अलावा उस व्यक्ति को 2 साल की जेल भी हो सकती है।
संविधान के अनुच्छेद 192 (2) में राज्यपाल को किसी जनप्रतिनिधि को हटाने के मामले में चुनाव आयोग से मात मांगने का अधिकार प्राप्त है। मत के अनुसार चुनाव आयोग आगे की प्रक्रिया को शुरू करता है।
भारत का सुप्रीम कोर्ट ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में उसकी जो विचारधारा है वह बिल्कुल स्पष्ट है। कोर्ट के अनुसार अगर कोई भी व्यक्ति लाभ के पद पर आसीन है और उसके विपरीत अगर वह दूसरे प्रकार के लाभ का पद प्राप्त करता है या उस पद पर आसीन हो जाता है। तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति के ऊपर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है वह अगर सांसद या विधायक है तो उसकी सदस्य को निरस्त किया जा सकता है।
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जुलाई 2001 में, तीन सदस्यीय एससी बेंच ने झारखंड के प्रमुख मुक्ति मोर्चा शिबू सोरेन के लिए संसद की सदस्यता रद्द कर दी। क्योंकि राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करते समय उन्हें झारखंड सरकार द्वारा गठित अस्थायी “झारखंड जिला स्वशासन परिषद” के अध्यक्ष के रूप में राजस्व कार्यालय में नियुक्त किया गया था।
UPA-1 के समय के दौरान “लाभ कार्यालय” विवाद के कारण सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देने और 2006 में रे बरेली के फिर से चुनाव के लिए मजबूर होना पड़ा। सोनिया गांधी ने सांसद होने के साथ-साथ “राष्ट्रीय सलाहकार परिषद” का पद भी संभाला।
2006 में, जया बच्चन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वह राज्यसभा की डिप्टी और यूपी फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की अध्यक्ष थीं। उसी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “यदि कोई संसद सदस्य या विधायक ‘लाभ के लिए’ नौकरी करता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी चाहे उसे वेतन या अन्य भत्ते मिलते हैं या नहीं।
2018 में लाभ का पद के कारण आम आदमी पार्टी से 20 विधायकों की सदस्यता को राष्ट्रपति ने इसे रद्द कर दिया।
अब 2022 में एक बार फिर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर कोयले को खानो के लाइसेंस अपने नाम पर जारी करने के चलते Office of profit case का सामना करना पद रहा है । अगर यह साबित हुआ तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा सकती है ।
लाभ के पद को वह पद कहा जाता है जिसमें सरकार की नियुक्ति होती है और सरकार के पास नियुक्त व्यक्ति को हटाने और उसके कार्य क्षेत्र को नियंत्रित करने का अधिकार होता है। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति को वेतन, अन्य भत्ते आदि के साथ नौकरी के सभी लाभ मिलते हैं।
यदि सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है;
अगर सरकार को भेजने वाले व्यक्ति को हटाने या निष्कासित करने का अधिकार है;
यदि सरकार कोई वेतन देती है;
सौंपे गए व्यक्ति के क्या कर्तव्य हैं और क्या वह सरकार के लाभ के लिए यह कार्य करता है;
केंद्र में अनुच्छेद 103 (1) एवं (2) के अनुसार-निर्वाचन आयोग की सलाह पर ‘राष्ट्रपति’ करेगा तथा राज्यों में अनुच्छेद 192(1) एवं (2) के अनुसार – राज्य निर्वाचन आयोग की सलाह पर राज्यपाल करेगा।
उसके पास लोकसभा की सदस्यता के लिए चुने जाने की योग्यता है।
वह संघ या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई आकर्षक पद धारण नहीं करेगा।
हालांकि, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, केंद्र सरकार या राज्य सरकार के मंत्री की स्थिति को ‘लाभप्रद स्थिति’ के रूप में नहीं माना जाता है।
हम आशा करते है के इस आर्टिकल से आपको Office of profit kya hai ? क्यों इसके चलते विधायक तक को अपनी कुर्सी गवानी पद जाती है? Office of Profit के बारे में सविधान और अदालत क्या कहता है ? famous case of Office of Profit kya kya hai ? आदि के बारे में विस्तार से बताया है । अगर आपका अभी भी कोई सवाल या सुझाव है तो आप निचे कमेंट कर सकते है । हमारे साथ जुड़े रहने के लिए हमे सोशल मीडिया पर फॉलो करे । धन्यावाद।
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